शनिवार, अक्तूबर 13, 2012

सुन्दरकाण्ड और गूगल

बचपन में माँ प्रतिदिन श्रीरामचरितमानस से सुन्दर काण्ड का पाठ करती थीं। तब समझ कुछ नहीं आता था बस माँ के सुरीले स्वर याद रहते थे। और याद रहते थे वे कुछ शब्द जिनका वो रोज पाठ करती थीं। फिर सब छूट गया - कालेज, पढाई , नौकरी इत्यादि ने प्राथमिकता ले ली।

आज कई वर्षों बाद कुछ पंक्तियाँ कान पर पड़ीं - देजा वू की आकस्मिक अनुभूति हुई! लगा - अरे ये तो पहले कहीं सुना हुआ है। वही चौपाई नीचे चिपका रहा हूँ - आपने तो अवश्य ही सुनी होंगी।

चौपाई:- 
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥॥

भावार्थ:-
अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है॥1॥

उपरोक्त यहाँ से लिया गया है।

यह प्रसंग तब का है जब सुन्दर काण्ड में हनुमानजी लंका नगरी में प्रवेश करने वाले थे। क्या सुन्दर रचना है! माँ की सुरीली आवाज़ आज फिर कानों में गूँज पड़ी।

इन पंक्तियों को गूगल सर्च करने पर देखिये क्या मिला -


Caja Municipal - स्पेनी भाषा में नगरपालिका भवन को कहा जाता है। और ये "scandal" पता नहीं कहाँ से जोड़ दिया - कहीं केजरीवाल इफेक्ट तो नहीं :-)

जय हो गूगल देव! राम मिलायी जोड़ी - एक अँधा एक कोढ़ी!

रविवार, सितंबर 09, 2012

गेंद

कुछ दिन पहले एक सहयोगी के सुपुत्र के जन्मदिवस पर जाना हुआ। वहीँ यह घटनाएं घटित हुई थी।

केक काटने की रीति से पहले माता पिता ने सगर्व पुत्र को सबके सामने प्रचारित किया। सोफे के पीछे से सर नीचे किये हुए एक "लिटिल मास्टर" प्रस्तुत हुए। गर्दन को चहुँ ओर चकराते और हाथ की उँगलियों को आपस में उलझाते हुए यह सुकुमार आगे बढे। अपने माता पिता के अनुसार उनके सुपुत्र विज्ञान, ज्यामित्री, खगोलशास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में निपुण थे। नगर के सबसे महंगे कोचिंग इंस्टिट्यूट में वे अल्पायु से ही IIT के लिए तैयारी कर रहे थे।

पानी का क्वथनांक, ग्रहों का अनुक्रम, पाइथागोरस का सिद्धांत सब एक-एक कर उनकी जिव्हा पर अवतरित हुए। मर्चेंट ऑफ़ वेनिस से उद्धृत कर "हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती" ऐसा प्रमेय उन्होंने प्रदर्शित किया। युवा अवस्था में समाज के मूर्धन्य खंड बनने का भाव भी उस बालक ने प्रकट किया।

माता पिता फूल कर कुप्पा थे। माता इतने प्रतिभाशाली पुत्र को जन्मने पर खुद को बधाईपात्र मान रही थी और पिता सोच रहे थे कि पुत्र के उच्च सरकारी अफसर या नेता बनने पर उनके पास आने वाली सिफारिशों को वे कैसे संचलित करेंगे।

बच्चा संग साथियों को लेकर बाग़ में छुपकर आम चुराने की तरकीब बनाने वाला नटखट कम और Astroboy ज्यादा लग रहा था। बाकी विधाओं का तो पता नहीं मगर रट्टाशास्त्र में यक़ीनन पी एच डी करेंगे ऐसा मेरा मत था। बालपन में सरलता का ऐसा ह्रास देखकर मैं चिंतित था।


अब सब प्रस्तुतजन अपने-अपने बाल गोपाल की प्रतिभा का बखान करने लगे थे। अब तक बात ट्विंकल-ट्विंकल लिट्टिल स्टार, बा-बा ब्लैक शीप, जैक एंड जिल, जॉनी-जॉनी यस पापा से शुरू हो यत्र तत्र अन्यत्र पहुँच चुकी थी।

अंततोगत्वा यह प्रख्यान सम्पान हुआ और किन्ही कृपालु जन ने उन बाल से पूछा - " चलो यह सब सही रहा, अब बताओ तुम्हे क्या उपहार चाहिए?"

महफ़िल में सरसरी सी फ़ैल गयी। अरे इतना प्रतिभावान बालक है, क्या ही मांग बैठे? यह सोच सबके मन में थी। पीछे कुछ सज्जन "इन्सैक्लोपीडिया ब्रितानी" या "शेकस्पियर का संपूर्ण संकलन" पर शर्त लगा रहे थे।

बालक का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा! कुछ संकुचाते, कुछ इठ्लाते हुए मुख पर रखे मुखौटे को मानो उतार, कृतज्ञ भाव से उसने कहा - "गेंद"

आगे का कथानक जानने में रूचि न होते हुए मैंने तृप्त-सम्पुष्टित हो द्वार की ओर मुख किया।

नोट - यह रचना पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की लघुकथा "बालक बच गया" को समर्पित है।

चित्र साभार - http://www.freedigitalphotos.net/


सोमवार, मार्च 19, 2012

लूडो

बचपन में बहुत लूडो और सांप सीढ़ी खेला गया है - बड़ा ही सरल, सहज सा खेल. आज कंप्यूटर पर भारी भरकम ग्राफिक वाले खेल खेले जाते हैं - NFS हो या AoE या और कोई. अब तो गति संवेदक खेल भी बाज़ार में आ चुके हैं - जो आपके शरीर की हरकतों को भांप कर उसे स्क्रीन पर परिकल्पित करते हैं.

देखें तो यह प्रचलन खेलों, फिल्मों या किसी भी तकनीक आधारित विषय पर लागू होता है. मूर के सिद्धांत के अनुसार संगणन के हार्डवेयर में उन्नत तकनीकों के प्रयोग की वजह से आज मनुष्य के समक्ष कई विकल्प प्रस्तुत हैं. देखिये त्रासदी यह है कि टाइटैनिक जहाज के डूबने पर बनी फिल्म टाइटैनिक को बनाने में जहाज से ज्यादा पैसा लगा था!


आज के ये विडियो गेम्स कुछ ज्यादा ही यांत्रिक हैं. मानना पड़ेगा कि बहुत उच्च श्रेणी के वैशिष्ठ्य से लबालब है - आपको हैरान कर सकते हैं मगर उनमें कुछ तो कमी है. वह कमी है संयोग की. आप एक बार किसी विडियो गेम को खेल कर देखें - अगली बार आप उसे खेलेंगे तो आप पात्रों की स्थिति और कार्यकलाप का अनुमान लगा सकते हैं. आप कार रेस पर आधारित कोई खेल खेलें और देखें - एक निर्धारित समय पर ही कोई मोड़ या कोई दूसरा वाहन आपके सामने आएगा. आप किसी दूसरे 'Strategy' खेल का भी उदाहरण दे सकते हैं.

इन महंगे विडियो गेम्स के मुकाबले सांप सीढ़ी और लूडो जैसे खेल भले ही रमणीय न हो मगर आपके अंतर्मन को जरुर संतुष्ट करते हैं. आप खेल की परिस्थिति का पूरा अंदाज लगाकर कूटनीति बना लें मगर आपकी अगली चाल का निर्णय पासा फेंकने के बाद ही हो पाता है. प्रारब्ध के इस हस्तक्षेप से खेल में जो अनिश्चितता प्रस्तुत होती है वही खेल का मधुर रस है!

Image Courtesy: Wiki User Micha