रविवार, अगस्त 18, 2013

श्रीलंका - एक भूमिका

आयुबोवान।

मैं यह चिठ्ठा अपनी श्रीलंका यात्रा के अनुभवों को सहेजने के लिए लिख रहा हूँ। मेरे ये अनुभव श्रीलंका के इतिहास, समाज, संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का एक विवरण हैं। जब भी मैं इन महान विषयों पर शेखियाँ न बघार पाऊँ तो कुछ छुटमिल बातें लिखूंगा। यह संभव है कि अवलोकन करते समय मैं कई बार किसी बात को समझने में चूका हूँ या फिर किसी चीज़ को समझने में मैंने गलत अनुमान लगाया हो। अगर ऐसा है तो मैं उसे सुधार करने में देर न करूँगा।

मैं इसे एक श्रीलंका की टूरिस्ट गाइड के रूप में नहीं लिख रहा हूँ मगर अगर इसका उपयोग उस रूप में भी किया जाये तो मुझे मान्य है। मैं यथासंभव यात्रा सम्बन्धी जानकारी देने का प्रयास भी करूँगा। यदि पाठक के पास कोई विशेष सवाल हैं तो मैं उनका भी उत्तर देने का प्रयास करूँगा यद्यपि ऐसे सवालों का उत्तर देने में लोनली प्लेनेट या ट्रिप एडवाइजर पर मौजूद विशिष्ठजन मुझसे कहीं ज्यादा सक्षम हैं।


यह प्रविष्टि मेरे लिए इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा मेरे मन में श्रीलंका के प्रति विद्यमान पूर्वाग्रहों को एक चुनौती मिली है। या यूँ कहें कि उन पूर्वाग्रहों का विनाश हुआ है। ऐसे में मुझे प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन का एक उद्धरण याद आ रहा है।

" देशाटन कट्टरपन और संकीर्ण मानसिकता के लिए अचूक रामबाण है और इस वजह से हम में से कई लोगों को इसकी सख्त जरुरत है। दूसरे व्यक्तियों और चीज़ों के बारे में खुले, उदारवादी और हितैषी विचार कूप मंडूक होकर नहीं बनाये जा सकते। "

मेरा मानना था कि मैं श्रीलंका के बारे में अपने विचार एक भारतीय के दृष्टिकोण से न रखूं वरन श्रीलंका को एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक की तरह देखूं।  मगर लगता है कि यह न तो संभव होगा और न उचित। अवचेतन मन किसी भी विचार को अपने रंग में रँगे बिना कहाँ मानता है भला ! वैसे भी मनुष्य और उसके पूर्वाग्रहों को कौन अलग कर पाया है - वही तो उसकी असली पहचान है। और कुछ नहीं तो कम से कम वे इन नीरस प्रविष्टियों में थोडा रस तो भर पाएँगी।

विचार यह है कि हर एक विषय पर एक नयी प्रविष्टि लिखूं।  उम्मीद है कि मुझमें इतना अनुशासन होगा ! मौलिक रूप से यह प्रविष्टियाँ मैं अपने अंग्रेजी के चिट्ठे पर लिख रहा हूँ।  वहाँ लिखने के बाद ही उसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रकाशित करूँगा। वैसे मैं दोनों ही भाषाओँ में पैदल हूँ तो उम्मीद है कि पाठक को उसका अंतर महसूस नहीं होगा।

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