शुक्रवार, सितंबर 20, 2013

हज - किश्त ३

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हज - क़िस्त १ 
हज - क़िस्त २ 

उस दिन तड़के ही फ़ारुख़ की नींद खुल गयी थी। आम तौर पर रुखसाना सुबह फ़ारुख़ से पहले उठ कर घर के कामों में लग जाती थीं मगर आज तो नजारा ही बदला था। रुखसाना सुबह आँख मलते हुए उठी तो सामने देखा कि फ़ारुख़ नहा धो और तैयार हो सामने बरामदे में चक्कर लगा रहे थे। रुखसाना झटके से उठीं और मुँह पर पानी के छींटे मार घर के काम निबटाने लगीं।

उधर फ़ारुख़ की रगों में तो जोश की लहरें रवां हो रही थीं। न जाने किस अनजान रूहानी ताक़त ने उनके ज़िस्म में नयी जान डाल दी थी। इतने सालों से सजाया सपना आज पूरा जो होने वाला था। तकस्सुल जिस्म एक साथ इतनी सारी जज़बाती लगन देख, उसे संभाल नहीं पा रहा था इसलिए चक्कर लगा उस सरगर्मी को नफ़ी करने की कोशिश कर रहा था।

नाश्ता करने के बाद फ़ारुख़  ने मंजूर को आवाज दी - जाओ बेटा जरा एक ऑटोरिक्शा ले आओ। फिर फ़ारुख़, रुखसाना, शाहरुख़, सलीम, अफ़साना और मंजूर को साथ लिए रिक्शे पर चल दिए। रुपयों की थैली एक बैग में बंद थी। रिक्शे पर बैठे हुए, फ़ारुख़ की आँखों के सामने उनकी पूरी जिंदगी की दास्ताँ गुज़र रही थी। अपना बचपन, खेल, वरज़िशी, खिलन्दड़ी, लड़कपना, निकाह, बच्चे, कारखाना, कारीगर, मशीन, कपड़े, तंगी, झगड़े ,फब्ती सब गुजर रहे थे।

अचानक रिक्शा रुक गया और साथ ही में फ़ारुख़ के ख्यालों की गाड़ी भी। आगे देखा रास्ते में काफी भीड़ जमा थी। रिक्शे का पार हो पाना नामुमकिन था। फ़ारुख़ रुपयों का बैग हाथों कस कर पकड़े रिक्शे से उतरे और सलीम से बोले - जरा देखो क्या बात है। सलीम ने वापस आकर बताया - अब्बा अपने कारखाने में काम करने वाले मदन के साथ एक हादसा हो गया है। आज सुबह दुकान की तरफ जा रहे था कि किसी लॉरी ने टक्कर मार दी। वहां उसकी बीवी और बच्चे रो पीट रहे हैं इसीलिए मज़मा लगा हुआ है।


फ़ारुख़ आगे बढ़े और भीड़ को चीरते हुए अन्दर पहुँचे तो देखा कि दिल दहला देने वाला नज़ारा था। मदन लहूलुहान रास्ते पर पड़ा था। उसके सर पर गहरी चोट लगी थी। उसकी बीवी उसका सर अपनी गोद में रख उसे हिला - हिलाकर उससे बात करने के कोशिश कर रही थी। फ़ारुख़ ने तुरंत उसे ऑटोरिक्शा में बैठवाया और अस्पताल ले गए। और भी कई लोग साथ आये।

अस्पताल में मुआयना करने के बाद डॉक्टर ने कहा कि खून बहने की वजह से इनका काफी नुक्सान हो चुका है  सो इन्हें तुरंत ही ऑपरेशन के लिए ले जाना होगा। ऑपरेशन की फीस डेढ़ लाख रुपये, वहाँ रिसेप्शन पर जल्द से जल्द जमा कर दें। पैसे का नाम सुनते ही भीड़ में से कई तो यूँ ही रफूचक्कर हो गए। फारुख ने मदन की बीवी को तलब किया तो उसने बताया कि ग़रीबी की हालत में वो इतने रुपयों का इंतज़ाम नहीं कर पायेगी। उधर नर्स ने आकर कहा कि जल्द पैसे जमा करवाएँ नहीं तो मरीज़ की हालत और भी ख़राब हो सकती है।

फ़ारुख़ ने अपने घर वालों से सलाह ली। वे काफी दिमागी कशमकश में थे। फिर उन्होंने रुखसाना की तरफ एक नज़र डाली और उन्हें ज़वाब मिल गया। उन्होंने रुपयों का बैग मदन की बीवी के हाथ में थमाया और कहा कि इलाज़ में इनका इस्तेमाल करे।

अस्पताल से बाहर निकलते हुए रुखसाना से बोले - अल्लाह की मर्जी होगी तो फिर किसी और साल हज़ कर लेंगे। घर की तरफ रुख करते हुए आज फ़ारुख के दिल में अजीब सा सुकून था।

(समाप्त)

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